Dishonest money comes out by tearing every part of the body.
🙏🙏. बेईमानी का पैसा शरीर के एक एक अंग फाड़कर निकलता है।
एक सच्ची कहानी
रमेश चंद्र शर्मा जो पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर चलाते थे,उन्होंने अपने जीवन का एक पृष्ठ खोल कर सुनाया जो पाठकों की आँखें भी खोल सकता है और शायद उस पाप से,जिस में वह भागीदार बना, उससे भी बचा सकता है।
रमेश चंद्र शर्मा का मेडिकल स्टोर जो कि अपने स्थान के कारण काफी पुराना और अच्छी स्थिति में था। लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि धन एक व्यक्ति के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है और यही बात रमेश चंद्र जी के साथ भी घटित हुई।
रमेश जी बताते हैं कि मेरा मेडिकल स्टोर बहुत अच्छी तरह से चलता था और मेरी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी। अपनी कमाई से मैंने जमीन और कुछ प्लॉट खरीदे और अपने मेडिकल स्टोर के साथ एक क्लीनिकल लेबोरेटरी भी खोल ली। लेकिन मैं यहां झूठ नहीं बोलूंगा। मैं एक बहुत ही लालची किस्म का आदमी था क्योंकि मेडिकल फील्ड में दोगुनी नहीं बल्कि कई गुना कमाई होती है।
शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे कि मेडिकल प्रोफेशन में 10 रुपये में आने वाली दवा आराम से 70-80 रुपये में बिक जाती है। लेकिन अगर कोई मुझसे कभी दो रुपये भी कम करने को कहता तो मैं ग्राहक को मना कर देता। खैर, मैं हर किसी के बारे में बात नहीं कर रहा हूं, सिर्फ अपनी बात कर रहा हूं।
वर्ष 2008 में, गर्मी के दिनों में एक बूढ़ा व्यक्ति मेरे स्टोर में आया। उसने मुझे डॉक्टर की पर्ची दी। मैंने दवा पढ़ी और उसे निकाल लिया। उस दवा का बिल 560 रुपये बन गया। बूढ़े ने उसने अपनी सारी जेब खाली कर दी लेकिन उसके पास कुल 180 रुपये थे। मैं उस समय बहुत गुस्से में था क्योंकि मुझे काफी समय लगा कर उस बूढ़े व्यक्ति की दवा निकालनी पड़ी थी और ऊपर से उसके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे।
बूढ़ा दवा लेने से मना भी नहीं कर पा रहा था। शायद उसे दवा की सख्त जरूरत थी। फिर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "मेरी मदद करो। मेरे पास कम पैसे हैं और मेरी पत्नी बीमार है। हमारे बच्चे भी हमें पूछते नहीं हैं। मैं अपनी पत्नी को इस तरह वृद्धावस्था में मरते हुए नहीं देख सकता।"
लेकिन मैंने उस समय उस बूढ़े व्यक्ति की बात नहीं सुनी और उसे दवा वापस छोड़ने के लिए कहा। यहां पर मैं एक बात कहना चाहूंगा कि वास्तव में उस बूढ़े व्यक्ति की दवा की कुल राशि 120 रुपये ही बनती थी। अगर मैंने उससे 150 रुपये भी ले लिए होते तो भी मुझे 30 रुपये का मुनाफा ही होता। लेकिन मेरे लालच ने उस बूढ़े लाचार व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा।
फिर मेरी दुकान पर खड़े एक दूसरे ग्राहक ने अपनी जेब से पैसे निकाले और उस बूढ़े आदमी के लिए दवा खरीदी। लेकिन इसका भी मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मैंने पैसे लिए और बूढ़े को दवाई दे दी।
समय बीतता गया और वर्ष 2009 आ गया। मेरे इकलौते बेटे को ब्रेन ट्यूमर हो गया। पहले तो हमें पता ही नहीं चला। लेकिन जब पता चला तो बेटा मृत्यु के कगार पर था। पैसा बहता रहा और लड़के की बीमारी खराब होती गई। प्लॉट बिक गए, जमीन बिक गई और आखिरकार मेडिकल स्टोर भी बिक गया लेकिन मेरे बेटे की तबीयत बिल्कुल नहीं सुधरी। उसका ऑपरेशन भी हुआ और जब सब पैसा खत्म हो गया तो आखिरकार डॉक्टरों ने मुझे अपने बेटे को घर ले जाने और उसकी सेवा करने के लिए कहा। उसके पश्चात 2012 में मेरे बेटे का निधन हो गया। मैं जीवन भर कमाने के बाद भी उसे बचा नहीं सका।
2015 में मुझे भी लकवा मार गया और मुझे चोट भी लग गई। आज जब मेरी दवा आती है तो उन दवाओं पर खर्च किया गया पैसा मुझे काटता है क्योंकि मैं उन दवाओं की वास्तविक कीमत को जानता हूं।
एक दिन मैं कुछ दवाई लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर गया और 100 रु का इंजेक्शन मुझे 700 रु में दिया गया। लेकिन उस समय मेरी जेब में 500 रुपये ही थे और इंजेक्शन के बिना ही मुझे मेडिकल स्टोर से वापस आना पड़ा। उस समय मुझे उस बूढ़े व्यक्ति की बहुत याद आई और मैं घर चला गया।
👉मैं लोगों से कहना चाहता हूं कि ठीक है कि हम सभी कमाने के लिए बैठे हैं क्योंकि हर किसी के पास एक पेट है। लेकिन वैध तरीके से कमाएं,ईमानदारी से कमाएं । गरीब लाचारों को लूट कर कमाई करना अच्छी बात नहीं है क्योंकि नरक और स्वर्ग केवल इस धरती पर ही हैं,कहीं और नहीं। और आज मैं नरक भुगत रहा हूं।
पैसा हमेशा मदद नहीं करता। हमेशा ईश्वर के भय से चलो। उसका नियम अटल है क्योंकि कई बार एक छोटा सा लालच भी हमें बहुत बड़े दुख में धकेल सकता है।
जीवन शतरंज के खेल की तरह है और यह खेल आप ईश्वर के साथ खेल रहे हैं ...
आपकी हर चाल के बाद अगली चाल ईश्वर चलता है।
जैसी करनी वैसा फल,
आज नहीं तो निश्चित कल।
Dishonest money comes out by tearing every part of the body.
a true story
Ramesh Chandra Sharma, who used to run a medical store in a town called 'Khanna' in Punjab, narrated a page from his life that could open the eyes of the readers and perhaps even save him from the sin he became a participant in. could.
Ramesh Chandra Sharma's Medical Store which was quite old and in good condition due to its location. But as it is said that money corrupts the mind of a person and the same thing happened with Ramesh Chandra ji.
Ramesh ji says that my medical store was running very well and my financial condition was also very good. With my earnings, I bought land and some plots and also opened a clinical laboratory along with my medical store. But I won't lie here. I was a very greedy kind of person because in the medical field the income is not double but manifold.
Perhaps most of the people would not be aware that in the medical profession, a medicine which comes in 10 rupees is easily sold for 70-80 rupees. But if someone ever asked me to reduce even two rupees, I would have refused the customer. Well, I'm not talking about everyone, just talking about myself.
In the year 2008, an old man came to my store during the summer. He gave me the doctor's prescription. I read the medicine and took it out. The bill for that medicine became Rs 560. The old man emptied all his pockets but he had a total of 180 rupees. I was very angry at that time because I had to take the medicine of that old man after taking a long time and on top of that he did not even have enough money.
The old man could not even refuse to take the medicine. Maybe he was in dire need of medicine. Then the old man said, "Help me. I have little money and my wife is sick. Even our children don't ask us. I can't see my wife dying of old age like this."
But I did not listen to that old man at that time and asked him to drop the medicine back. Here I would like to say one thing that in fact the total amount of medicine of that old man used to be Rs 120 only. Even if I had taken 150 rupees from him, I would have made a profit of 30 rupees. But my greed did not spare even that old helpless man.
Then another customer standing at my shop took money out of his pocket and bought medicine for the old man. But it didn't affect me either. I took the money and gave medicine to the old man.
Time passed and the year 2009 arrived. My only son got brain tumor. At first we didn't even know. But when it came to know, the son was on the verge of death. Money kept flowing and the boy's illness got worse. Plots were sold, land was sold and finally the medical store was also sold but my son's health did not improve at all. He also underwent an operation and when all the money was exhausted finally the doctors asked me to take my son home and serve him. After that my son passed away in 2012. I could not save him even after earning my whole life.
In 2015, I was also paralyzed and I got hurt. Today when my medicine comes, the money spent on those medicines bites me because I know the real cost of those medicines.
One day I went to the medical store to get some medicine and an injection of Rs 100 was given to me for Rs 700. But at that time I had only Rs 500 in my pocket and I had to come back from the medical store without the injection. At that time I remembered that old man very much and I went home.
I want to tell people that it is okay that we all are sitting to earn because everyone has a stomach. But earn legitimately, earn honestly. It is not a good thing to earn money by looting the poor, because hell and heaven are only on this earth, not anywhere else. And today I am suffering hell.
Money doesn't always help. Always walk in the fear of God. His rule is unshakable because sometimes even a small greed can lead us to great misery.
Life is like a game of chess and this game you are playing with God...
After your every move, God follows the next move.
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