Pathan - An Honest Open Mind Review
💥 पठान - एक ईमानदार ओपन माइंड रिव्यू💥
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💥 Pathan - An Honest Open Mind Review 💥
If I talk only about the film, then this film is a very garbage film.
In the process of making an action film, I have been in such a whirlwind that just don't ask.
The producer told the director - 'Brother, don't worry about money, just make whatever you can make considering it as an action film'.
Then that yesterday's boy "Siddharth Anand" set the money on fire which created a lot of buzz.
Fight over truck...
Fight on the roof of a moving train...
Fight with helicopter...
Fighting in the air...
Motorcycle fight in the snow...
Skating in a frozen lake fight...
Means whatever you say is present sir.
Helicopters suddenly appear out of nowhere...
Motorcycles appear out of nowhere...
Suddenly Shah Rukh's entire team attacks John Abraham's base while flying.
To make Shahrukh "larger than life", the director has put all his efforts till the top of the chest.
Even Tom Cruise or Keanu Reeves will bow down on his knees and bow down to Siddharth Anand if he sees the film.
Deepika has definitely remained a superwoman.
Russian wrestlers weighing 100 kg are being rubbed on the ground.
Flying kick, spin kick, ice skating, gun, sword, rocket launcher..... only cannon and missile were left. Otherwise, Deepika fired the weapons of the whole world.
John Abraham is shown to be more sharp minded than Chacha Chaudhary.
And in the end, he falls into Shahrukh's trap in such a stupid way that it would have been right if he himself had asked for death.
<<< Agreed that logic should be kept aside while watching Bombay Masala film, but still there should be some head and feet.
This is not Rohit Shetty's film, but a spy thriller >> That's why brother put some logic??
Shah Rukh, a child raised in an orphanage, first becomes an army officer and then a top agent in "RAW". (means, should I not ask logic even now??)
The editing of the film is of two pennies.
Suddenly two completely different scenes juxtaposed are clearly visible.
In the film, Dimple Kapadia narrates the story in a flashback, and then in the same flashback story, Shahrukh starts narrating his flashback story.
Then to come back to the current story, your head will wander Guru, where did this story of mother-in-law start?
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The fight scenes are so long that you will say -- Ok brother, have seen your action man,,,, now go ahead.
And this is also when editing would have happened in the film. Now imagine how long the action sequences of the original would be. (complete waste of money)
In ending the film, the director has fooled the audience a lot.
Many spectators got up from their seats three times, that the film is over now, then it is over. But the film does not take the name of ending.
Every time the screen went dark, the next scene would come up.
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If we talk about acting, then Dimple Kapadia, Ashutosh Rana, Shahrukh, Deepika and John put so much pressure on acting that they did such a thing.
Shahrukh still did natural acting.
But in order to force Deepika and Dimple Kapadia to act emotional after every scene, they made them overact.
John Abraham -
If this man learns to speak dialogues till his retirement, consider it as a matter of luck.
The dialogue is being spoken in such a way as if the answer has come by rote in the viva. And as soon as the viva is over, he says - Now don't ask me anything.
John is still fluttering out of his modeling role to this day.
For the last 22 years, in every movie, in every scene, the dialogue of "one eye and the upper cheek" is being uttered.
John has a good body. It has become a bit lighter these days. Might have stopped taking bodybuilding steroids now.
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Ashutosh Rana - In order to forcefully show patriotism and a strong but emotional army officer, the director left a cartoon of veteran actor like Ashutosh.
While speaking the dialogue every time, in the last, he was forced to show such pressure that Ashutosh Rana forgot his acting.
Ashutosh Rana is speaking dialogues with tears in his eyes in every scene, as if the scene of daughter's farewell is going on.
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And the most cheating has happened with the character actors.
At the beginning of the film, Shahrukh Khan forms a team of officers who have retired before age and due to injury.
And then those poor actors were dealt with in a scene or two throughout the movie
There were probably four or five actors, but leave aside the names of all those actors, you can't even remember their face in the film.
The poor fellow must be breaking his head after the release of the film.
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In Bhaijaan's film, the train has been entered by tearing the roof.
But the tremendous storm of emotions was clearly visible on Bhaijaan's face even today.
Bhaijaan looked scared in front of Shahrukh's fire.
Because of friendship with Shahrukh, I entered the film, but if my character is not as strong as Shahrukh, then what will happen to my image?
All is well that ends well - At present there is an extra hype going on in the film because of Salman.
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In the end, I will leave by saying something positive.
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Action sequences are top notch...as equal as any Hollywood movie.
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It is clearly visible in the film that Shahruअगर सिर्फ फिल्म की बात करू, तो ये फिल्म निहायत ही कूड़ा फिल्म है।
ऐक्शन फिल्म बनाने के चक्कर में ऐसी चक्करघिन्नी घुमाई है की बस पूछिए मत।
प्रोड्यूसर ने निर्देशक को बोला - की भाई तू पैसों की चिंता मत करियो , बस तू ऐक्शन फिल्म समझ के जो बना सकता है बना दे।
फिर वो कल के लौंडे "सिद्धार्थ आनंद" ने पैसों में वो आग लगाईं की धूम ही मचा दी।
ट्रक के ऊपर फाइट ...
चलती ट्रेन की छत पे फाइट ...
हेलीकॉप्टर से फाइट ...
हवा में उड़ते हुए फाइट ...
बर्फ में मोटरसाइकिल से फाइट ...
जमी हुई झील में स्केटिंग करते हुए फाइट ...
मतलब आप जो बोलो वो हाज़िर है साब।
कहीं से भी अचानक हेलीकॉप्टर प्रकट हो जा रहें हैं ...
कहीं से भी मोटरसाइकिलें प्रकट हो जातीं हैं...
अचानक से शाहरूख की पूरी टीम उड़ते हुए जॉन अब्राहम के अड्डे पे हमला कर देती है ..
शाहरूख को "लार्जर दैन लाइफ़" बनाने के लिए निर्देशक ने अपनी ऐड़ी चोटी सीना छाती तक का जोर लगा दिया है।
टॉम क्रूज़ या कीनू रीव्स भी फिल्म देख ले तो घुटनों के बल गिरकर प्रणाम करेगा सिद्धार्थ आनंद को।
दीपिका कतई सुपरवूमन बनी हुई हैं .
सौ सौ किलो के रशियन पहलवानों को धरती पे रगड़ रगड़ के पेल रही है।
फ़्लाइंग किक , स्पिन किक , आइस स्केटिंग , बन्दूक , तलवार , रॉकेट लॉन्चर ..... बस तोप और मिसाइल ही रह गयी थी। वरना दुनिया भर के हथियार चला डाले दीपिका ने।
जॉन अब्राहम को चाचा चौधरी से भी ज्यादा शार्प माइंड अक्लमंद दिखाया हुआ है।
और अंत में ऐसी बेवकूफाना तरीके से शाहरुख के जाल में फंसता हैं की खुद ही मौत मांग लेता तो सही रहता।
<<< माना की बम्बइया मसाला फिल्म देखते हुए लॉजिक को परे रख देना चाहिए , लेकिन फिर भी कोई तो सर पैर होना चाहिए।
ये रोहित शेट्टी की फिल्म नहीं है , बल्कि एक स्पाई थ्रिलर है >> इसलिए थोड़ा तो लॉजिक डाल देते भाई ??
शाहरूख अनाथालय में पला बच्चा , पहले आर्मी ऑफिसर और फिर "रॉ" में टॉप एजेंट बन जाता है। ( मतलब अब भी मैं लॉजिक ना पूछूं क्या ??)
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फिल्म की एडिटिंग दो कौड़ी की है।
अचानक से जोड़े हुए दो बिलकुल अलग सीन साफ़ साफ़ पता चल जातें हैं।
फिल्म में डिम्पल कपाड़िया एक फ्लैशबैक में स्टोरी सुनाती है , और फिर उसी फ्लैशबैक स्टोरी में शाहरूख अपनी फ्लैशबैक स्टोरी सुनाने लगता है।
फिर वापिस वर्तमान स्टोरी में आने के लिए आपकी खुपड़िया घूम जायेगी गुरु , की ससुरी ये स्टोरी शुरू कहाँ से हुई थी ?
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फाइट सीन इतने लम्बे लम्बे हैं की आप बोलोगे -- ठीक है भाई , देख लिया तेरा ऐक्शन यार ,,,,अब आगे चल ना।
और ये भी तब है जबकि फिल्म में एडिटिंग हुई होगी। अब सोचिये की असली के ऐक्शन सीक्वेंस कितने लम्बे होंगे। (पैसों की फुल की बर्बादी है )
फिल्म का एंड करने में निर्देशक ने दर्शकों को खूब उल्लू बनाया है।
कई दर्शक तीन बार अपनी सीटों से उठ खड़े हुए , की फिल्म अब ख़तम हुई, तब ख़तम हुई । लेकिन फिल्म ख़तम होने का नाम ही नहीं लेती।
हर बार अँधेरी स्क्रीन होने के बाद अगला सीन आ जाता था।
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ऐक्टिंग की बात की जाए तो डिम्पल कपाड़िया , आशुतोष राणा , शाहरूख, दीपिका और जॉन पे ऐक्टिंग का इतना दवाब बना डाला की उनकी ऐसी तैसी कर डाली।
शाहरूख ने फिर भी नैचुरल ऐक्टिंग करी।
लेकिन दीपिका और डिम्पल का कपाड़िया को हर सीन के बाद जबरदस्ती इमोशनल होने की ऐक्टिंग करवाने के चक्कर में उनसे ओवरऐक्टिंग ही करवा डाली।
जॉन एब्राहम -
ये आदमी शायद अपने रिटायरमेंट तक डायलॉग बोला सीख जाए तो गनीमत समझना।
डायलॉग ऐसे बोल रहा है - जैसे वाइवा में आन्सर रट के आया है। और वाइवा ख़त्म होते ही बोलता है - अब मेरे से कुछ मत पूछना।
जॉन आज तक अपने मॉडलिंग वाले किरदार से बाहर निकलने को फड़फड़ा रहा है।
पिछले बाइस साल से हर फिल्म में हर सीन में "एक आँख और ऊपर वाला गाल" भींच भींच के डायलॉग बोल रहा है.
जॉन की बॉडी अच्छी है। थोड़ा हल्का हो गया है आजकल। शायद अब बॉडीबिल्डिंग स्टेरोइड लेनी बंद कर दी होंगी।
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आशुतोष राणा - जबरदस्ती देशभक्ति और एक कड़क लेकिन इमोशनल आर्मी ऑफिसर दिखाने के चक्कर में निर्देशक ने आशुतोष जैसे दिग्गज ऐक्टर का भी कार्टून बना के छोड़ दिया।
हर बार डायलॉग बोलते हुए लास्ट में जबरदस्ती उसे भावुक दिखाने का ऐसा दवाब बनाया की आशुतोष राणा अपनी ऐक्टिंग ही भूल गया।
आशुतोष राणा हर सीन में आँखों में पानी भर भर के डायलॉग बोल रहा है , जैसे की बेटी की विदाई का सीन चल रहा हो।
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और सबसे ज्यादा धोखा तो चरित्र अभिनेताओं के साथ हुआ है।
फिल्म के शुरू में शाहरूख खान उम्र से पहले व् चोट के कारण रिटायर हो चुके अफसरों की एक टीम बनता है।
और फिर पूरी फिल्म में उन बेचारे ऐक्टर्स को एक या दो सीन में निपटा दिया
शायद चार या पांच कलाकार थे वो , लेकिन उन सारे कलाकारों के नाम तो छोडो आप फिल्म में उनकी शक्ल तक याद नहीं रख पाते।
बेचारे फिल्म रिलीज के बाद अपना सर फोड़ रहे होंगे।
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भाईजान की फिल्म में ट्रेन की छत फाड़ के एन्ट्री करवाई गयी है।
लेकिन भाईजान के चेहरे पे भावनाओं का जबरदस्त आकाल आज भी साफ़ दिखाई दे रहा था।
भाईजान शाहरूख के जलवे के आगे डरे डरे से लग रहे थे -
की शाहरूख से दोस्ती के चक्कर में फिल्म में ऐन्ट्री तो कर ली , लेकिन मेरा किरदार भी शाहरूख जितना दमदार ना हुआ तो मेरी इमेज का क्या होगा ?
खैर अंत भला तो सब भला - फिलहाल फिल्म में सलमान की वजह से एक एक्स्ट्रा हाइप चल रही है।
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अंत में कुछ सकारात्मक भी बोल के ही जाऊंगा।
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Action sequences are top notch...as equal as any Hollywood movie.
फिल्म में साफ दिखाई देता है की शाहरूख , दीपिका और जॉन ने तमाम कमियों के बाद फिल्म के लिए काफी मेहनत करी है.
शाहरूख खान का 57 साल की उम्र में इतना कम बॉडी फैट मेंटेन करना बहुत ही जिगर वाला काम है।
इतने कम बॉडी फैट पर्सेंटेज पर ज्यादा समय तक रहना जानलेवा तक हो सकता है।
और खान साब पूरे तीन साल तक ऐसी फिज़िक मेंटेन करके चले। ,,,, सलाम रहेगा शाहरूख को।
पूरी फिल्म में बहुत ही बारीकी से देशभक्ति , पाकिस्तानी कनेक्शन, और फासिस्ट अंधभक्तों का ख़याल रक्खा गया है।
एएसआई एजेंट के साथ काम करते हुए भी पाकिस्तान के राष्ट्रवाद और उसके दर्शकों की भावनाओं का ख्याल रक्खा गया है।
एएसआई और रॉ की आपसी दुश्मनी के बावजूद उनका बहुत ही सॉलिड तरीके से तालमेल करवाया गया है।
ज़ाहिर है - की पाकिस्तानी दर्शकों में हमारी फिल्मों का भारत से ज्यादा क्रेज़ रहता है।
पूरी फिल्म में अंतिम सन्देश के तहत दिखाया गया है की आतंकियों से भारत और पाकिस्तान दोनों को खतरा है।
तो फाइनल एडिट में ये सब बातें जिसने भी सोची होंगी उसके दिमाग की दाद देनी पड़ेगी।
शाहरूख और आदित्य चोपड़ा वाकई बड़े जबरदस्त बिजनेस माइंड हैं।
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की ये फिल्म बच्चों और पूरी फैमिली के साथ देखी जा सकती है।
ढाई घंटे का फुल मनोरंजन है। मसाला है।
लेकिन कोई मीन मेख निकालने वाला या समानांतर सिनेमा प्रेमी हो तो ---- भाई भूल के भी फिल्म देखने मत जाना।
थर्ड डिग्री टॉर्चर है टॉर्चर।
जहाँ तक इस फिल्म के "2014 के बाद वाले भक्तों की जलाने" और "कमाई" की बात है, मैं चाहूंगा की ये फ़िल्म सर्वकालिक सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बने।
अब ये सिर्फ एक फिल्म ना होकर एक सेक्युलर भावना से जुड़ चुकी है , और फासिस्ट दिमाग वाले नफरती चिंटुओं को एक करारा जवाब है।
क्योंकि फिल्म की ऐसी बम्पर कमाई ये सिद्ध करती है की दर्शक हिन्दू मुस्लिम ना होकर मात्र एक दर्शक के तौर पर जाकर फ़िल्म इंजॉय कर रहें हैं।
कोविड के दुःखद दौर के बाद शाहरूख ने देश की जनता को थियेटर में मूवी का आनंद लेने का स्वाद दोबारा फील करवा दिया है।
इस फिल्म के हिट होने से तमाम बंद पड़े थियेटर और पूरी बम्बईया फिल्म इण्डट्री को एक नयी उड़ान मिली है।
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